मुंबई की राजनीति में गुंडागर्दी का नया चेहरा – MLA की मारपीट से लेकर टोल प्लाजा पर तोड़फोड़ तक, कहाँ जा रहा है महाराष्ट्र?

नमस्ते दोस्तों,
आजकल महाराष्ट्र, खासकर मुंबई की सियासत में कुछ ऐसा चल रहा है जिसे देखकर समझदार आदमी बस यही कहेगा – ये क्या तमाशा है? नेता लोगों को जनता ने चुनकर भेजा कि वो उनके लिए काम करेंगे, समस्याएँ हल करेंगे, नए स्कूल, अच्छे अस्पताल, बेहतर सड़कें, साफ़ पानी देंगे। लेकिन हकीकत में क्या हो रहा है? कोई अपने कमरे में खाने से नाराज़ होकर किसी गरीब वर्कर को पीट रहा है, तो कोई अपने वर्कर्स को खुलेआम कह रहा है – मारो, तोड़ो, बस कैमरे में मत आना!

कहीं ना कहीं ये सारी बातें इस बात की तरफ इशारा करती हैं कि कुछ नेता खुद को क़ानून से ऊपर समझने लगे हैं। उनको लगता है कि सत्ता का मतलब है ‘गुंडागर्दी’। और सबसे बड़ा सवाल – जब MLA ही गुंडागर्दी करेगा तो आम आदमी कहाँ जाएगा?

खाना पसंद नहीं आया, तो वर्कर को पीट दिया!

ताजा मामला तो आपने देखा ही होगा। शिंदे गुट के शिवसेना MLA संजय गायकवाड़ का वीडियो पूरे सोशल मीडिया पर घूम रहा है। वीडियो में क्या है? जनाब बनियान में बैठे हैं, खाना आया – पसंद नहीं आया। बस क्या था, उन्होंने कैंटीन के गरीब वर्कर को बुलाया, उसके हाथ में खाना पकड़ाया, और सरेआम उसकी बेइज्जती शुरू कर दी। पहले तो खाने की प्लेट सुंघाई, फिर अचानक घूंसे बरसा दिए। वर्कर बेचारा गिर पड़ा, फिर भी मारना नहीं छोड़ा।

ज़रा सोचिए – MLA हैं, बड़े आदमी हैं – उन्हें लगा खाना अच्छा नहीं तो वो शिकायत कर सकते थे, प्रशासन से बात कर सकते थे। लेकिन नहीं! सत्ता का घमंड देखिए – गरीब वर्कर पर हाथ उठा दिया। शर्म की बात तो यह है कि विधायक साहब को अपनी हरकत पर कोई पछतावा नहीं। उल्टा बोल रहे हैं कि नेता को ऐसा ही करना चाहिए! अरे भाई! जनता ने आपको वोट दिया है गुंडागर्दी के लिए या सेवा करने के लिए?

राज ठाकरे का ‘गुप्त मंत्र’ – हिंसा करो, पर कैमरे में मत आना!

अब आते हैं ठाकरे परिवार के दूसरे चेहरे पर – राज ठाकरे। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के मुखिया। हाल ही में उनका बयान आया – अगर तुम्हें किसी को पीटना है तो मारो, थप्पड़ मारो, लेकिन ध्यान रखना कोई वीडियो ना बना ले। पकड़े मत जाना। अब बताओ, क्या ये कोई नेता कहता है?

राज ठाकरे को कौन नहीं जानता – भाषणों में आग उगलना उनका पुराना स्टाइल है। लेकिन अब तो वो सीधे अपने वर्कर्स को हिंसा की छूट दे रहे हैं। मतलब गुंडागर्दी करना है, बस स्मार्ट बनकर करना है – कैमरे में मत आना।

टोल प्लाजा पर तांडव – MNS का स्टाइल!

राज ठाकरे के वर्कर्स ने ये ‘गुरुमंत्र’ तुरंत ही लागू भी कर दिया। वाशिम में MNS के कार्यकर्ताओं ने टोल प्लाजा पर हंगामा कर दिया। उनका कहना था कि वहाँ बुनियादी सुविधाएँ नहीं हैं। अब भाई, समस्या सही थी – लेकिन समाधान क्या था? तोड़फोड़! सारे बोर्ड, कंप्यूटर, खिड़कियाँ – सब फोड़ डाला।

अब सोचिए – अगर किसी को टोल से दिक्कत है तो क्या क़ानूनन तरीके से बात नहीं हो सकती? टोल कंपनी पर शिकायत करो, सरकार को घेरो। लेकिन नहीं! तोड़फोड़ करना है, वीडियो वायरल करना है – यही MNS का स्टाइल बन गया है।

ठाकरे ब्रदर्स – किस बात की होड़?

एक तरफ राज ठाकरे हैं, दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे। दोनों आपस में जैसे मुकाबला कर रहे हैं कि कौन ज़्यादा ‘दबंग’ है। कोई MLA वर्कर को पीट रहा है, तो कोई कार्यकर्ताओं को हिंसा सिखा रहा है।

लेकिन क्या इनकी बहादुरी बस गरीबों पर ही चलती है? कभी किसी बड़े बिल्डर या भ्रष्ट अफसर को मारा क्या? कभी किसी ठेकेदार को थप्पड़ मारा, जिसने घटिया पुल बनाया जो अगले दिन गिर गया? नहीं!

पुराने किस्से भी याद कर लो!

याद है वो किस्सा? कोविड के वक्त एक 65 साल के रिटायर्ड नेवी अफसर ने उद्धव ठाकरे पर बस एक मीम शेयर कर दिया था। बस फिर क्या था – शिवसैनिकों ने जाकर बुज़ुर्ग को पीट दिया। और कमाल देखिए – बाद में उद्धव ने उन गुंडों को माला पहनाई। वाह री बहादुरी!

बच्चों का ज़हर वाला खाना, पुल गिरा – तब कहाँ थी ये बहादुरी?

कहीं भी देख लो – जब भी बड़ी लापरवाही होती है, तब इनकी ‘हिम्मत’ गुम हो जाती है।

  • बच्चों ने दूषित मिड-डे मील खाया – 38 बच्चे अस्पताल पहुँच गए। किसी को थप्पड़ पड़ा?
  • पुणे में पोर्श गाड़ी से दो लोग मरे। नाबालिग VVIP ड्राइवर था। तब किसे पीटा?
  • घाटकोपर में होर्डिंग गिर गई – 17 लोग मर गए। किसे थप्पड़ मारा?

सवाल ये है – अमीरों के लिए, रसूखदारों के लिए ये नेतागण बिलकुल चुप क्यों हो जाते हैं?

असली मुद्दे क्यों नहीं पूछते?

भाई, अगर तुम्हें इतनी ही मराठी अस्मिता प्यारी है तो जाकर मोहम्मद अली रोड पर पूछो कि वहाँ मराठी क्यों नहीं चलती? या बॉलीवुड से पूछो कि मराठी फिल्मों को सपोर्ट क्यों नहीं मिलता? शाहरुख, आमिर, सलमान – इनसे पूछो कि कभी मराठी फिल्म बनाई क्या? नहीं पूछेंगे! क्योंकि वहाँ वोट बैंक है, डरे हुए हैं। डरते हैं बड़े लोगों से, बस गरीबों पर ताकत दिखाते हैं।

यही है ‘नया महाराष्ट्र’?

अब सवाल यही है – क्या यही है नया महाराष्ट्र? जहाँ MLA कैंटीन वर्कर को पीटेगा, MNS वाला टोल प्लाजा तोड़ेगा, कोई पूछने वाला नहीं होगा? बड़े घोटाले, भ्रष्टाचार, हादसे – सब पर चुप्पी?

असल में ये लोग बहादुर नहीं हैं – ये सिर्फ़ कमज़ोरों पर ताकत दिखाने वाले हैं। और ऐसे लोग ज्यादा दिन नहीं टिकते।

हम क्या कर सकते हैं?

दोस्तों, अब बात हमारे हाथ में है। हमें ऐसे लोगों को बार-बार वोट देकर सत्ता में नहीं भेजना। सवाल पूछना होगा – फेसबुक, इंस्टा, ट्विटर पर ही नहीं – अपने मोहल्ले, चाय की टपरी, ऑफिस, कॉलेज – जहाँ भी बैठो वहाँ ऐसे नेताओं की पोल खोलो।

वक्त आ गया है कि हम तय करें – गुंडागर्दी चाहिए या अच्छी सियासत?

तो अगली बार कोई कहे कि ‘ये नया महाराष्ट्र है’ – तो उसे ये सच्चाई सुनाना मत भूलना। और हाँ, अगली बार खाना ख़राब निकले तो वर्कर को मत पीटना – MLA को पीटने की बात भी मत करना 😄 – बस अगली बार वोट डालते वक्त याद रखना कि किसे मौका देना है और किसे घर बैठाना है।

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