"RCB की जीत बना मातम! बेंगलुरु भगदड़ में 11 फैंस की मौत | किसकी थी गलती?" "RCB की जीत बना मातम! बेंगलुरु भगदड़ में 11 फैंस की मौत | किसकी थी गलती?"

RCB की जीत में मातम क्यों पसर गया? बेंगलुरु की वो रात जो कभी नहीं भुलाई जाएगी 💔

3 जून 2025 — एक तारीख जो RCB फैंस के लिए हमेशा खास रहनी चाहिए थी। आखिर 18 साल का लंबा इंतज़ार जो खत्म हुआ था! पूरे बेंगलुरु में एक जश्न का माहौल था। लेकिन अफसोस, ये खुशी चंद घंटों में एक खौफनाक हादसे में बदल गई।

11 लोगों की मौत।
कई घायल।
और सबसे बड़ा सवाल – जिम्मेदार कौन है?

खुशियों में छुपा मातम 😢

RCB की जीत के जश्न में इतनी भारी भीड़ उमड़ी कि बेंगलुरु की सड़कों पर मानो सैलाब आ गया। और फिर, जो हुआ वो किसी बुरे सपने से कम नहीं था — भगदड़ मच गई, और 11 लोग अपनी जान गंवा बैठे।

अब सोचिए, जहां लोग जीत का जश्न मना रहे थे, वहां कुछ ही मीटर की दूरी पर लोग दम तोड़ रहे थे।
ये जश्न था या इंसानियत की हार?

आखिर जिम्मेदार कौन? 😠

जब सवाल उठे, तो सबने एक ही जवाब दिया — “भीड़ ज़्यादा थी, कुछ कर नहीं सकते थे।”
चाहे वो आयोजक हों, प्रशासन हो, आईपीएल के बड़े अधिकारी या खुद मुख्यमंत्री — सबने पल्ला झाड़ लिया।

पर वीडियो में यही सवाल उठाया गया है — क्या ये भीड़ अचानक आई थी?
नहीं!
RCB की जीत के बाद सेलिब्रेशन होना तय था, फैंस का उमड़ना तय था — फिर इंतज़ाम क्यों नहीं थे?

जब बाहर मौतें हो रही थीं, अंदर चल रहा था जश्न 😞

सोचिए, स्टेडियम के बाहर लोग तड़प रहे थे, वहीं अंदर डीजे बज रहा था, पटाखे चल रहे थे, लोग नाच रहे थे।
क्या हम इतने असंवेदनशील हो गए हैं कि किसी की मौत हमें रोक भी नहीं सकती?

क्या ये हादसा टल सकता था? 🤔

बिलकुल!
अगर प्लानिंग होती, अगर crowd management को सीरियसली लिया गया होता, तो शायद आज 11 परिवार उजड़ते नहीं।
RCB की जीत नई थी, लेकिन फैंस का जुनून नया नहीं है। फिर भी सब हाथ पर हाथ धरे बैठे थे।

हैदराबाद में एक मौत पर माफी, यहां 11 मौतें और सन्नाटा? 😶

वीडियो में 2024 की एक घटना का भी ज़िक्र है — जब हैदराबाद में एक फिल्म प्रीमियर के दौरान भगदड़ में एक इंसान की जान गई थी, और उस फिल्म के हीरो ने तुरंत माफी मांगी थी, मुआवज़ा भी दिया था।
पर बेंगलुरु की इस ट्रैजेडी में, जहां 11 जानें गईं, किसी बड़े चेहरे ने आगे आकर कुछ नहीं कहा। ये फर्क क्यों?

क्या आम आदमी की जान की कोई कीमत नहीं? 😔

होस्ट का कहना था — “RCB की ट्रॉफी अब सिर्फ जीत का नहीं, 11 मासूम लोगों के खून का प्रतीक बन गई है।”
हमारे देश में हर सरकार, हर सिस्टम की यही कहानी है — जब आम आदमी मरता है, तो वो सिर्फ एक आंकड़ा बन जाता है।

फैंस को दोष देना कहां तक सही है? 😡

कुछ लोग फैंस को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं — अरे भाई, जब इतना बड़ा इवेंट रखा गया, तो भीड़ तो आएगी ही!
आयोजकों ने बुलाया, सरकार ने प्रमोट किया, फिर सिक्योरिटी का इंतज़ाम क्यों नहीं था?

गलत प्राथमिकताएं, शर्मनाक सच्चाई 😠

ये पूरा मामला दिखाता है कि हमारे समाज में क्या ज्यादा मायने रखता है — तामझाम और दिखावा या इंसानी जान?
RCB की जीत एक प्राइवेट फ्रेंचाइज़ी की ट्रॉफी थी, लेकिन उसे ऐसे पेश किया गया जैसे राज्य का कोई गौरव मिल गया हो। और इसी चक्कर में लोगों की ज़िंदगी को दांव पर लगा दिया गया।

अंत में सिर्फ इतना कहना है…

कोई भी जीत इतनी बड़ी नहीं हो सकती कि उसमें इंसानी जान की कीमत भुला दी जाए।
RCB की ट्रॉफी अब जश्न नहीं, सबक बन चुकी है। और हमें इससे सीखना होगा।

आपका क्या कहना है इस पूरे मामले पर? क्या आपको लगता है कि ऐसा हादसा रोका जा सकता था?
कमेंट में जरूर बताइए, क्योंकि आपकी आवाज़ भी बदलाव ला सकती है।

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